कुहासा और घना होते जा रहा पर कुहासे में पुलिस की गश्ती नहीं दिखती है। जाहिर है कि दृश्यता घटकर दो-तीन मीटर ही रह जाती है। इसमें दुर्घटना की आशंका बलवती रहती है। और फर्ज करें कि दुर्घटना हो जाए तो पीड़ितों को तत्काल राहत की जरूरत होगी। इधर, ऐसे मौसम में अधिकतर सड़कें सूनी रहती है। बहुत जरूरत वाले ही कुहासे में सफर करते हैं। नतीजा, दुर्घटना हो जाए तो कोई सूचना देने वाला भी न मिले। और राहत में विलंब होता है तो दुर्घटना से पीड़ित के लिए जख्म के अतिरिक्त ठंड भी जानलेवा साबित हो सकता है। ऐसी दशा में पुलिस की गश्ती अत्यावश्यक है।
हाल ही में गोसाईं गाँव के नजदीक सड़क दुर्घटना में आर्मी अमित की मौत हो गयी अगर मौके पर गश्ती के जवान भी पहुँचती तो शायद जान बच सकती थी । मगर कड़ाके की ठंड में 2 बजे रात्रि कुछ संभव सा प्रतीत नहीं होता है ।
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