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गुरुवार, 29 सितंबर 2016

GS का नवरात्रि स्पेशल : पूजा के पहलें जरूर पढ़े नवरात्रि में कैसे करें माता दुर्गा को प्रसन्न। जानिए पूजा विधि और विधान


गोसाईं गाँव समाचार :
नवरात्रि का पर्व नज़दीक आ रहा है। दुर्गा सपत्शती में लिखा है कि जब असुरों का अत्याचार बढ़ने लगा और देवताओं ने माता दुर्गा से उन्हें प्रसन्न करने का उपाय पूछा तो देवी ने उन्हें चैत्र तथा अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से दशमी तिथि तक देवी के पूजन और व्रत का विधान बताया। उस दिन से ही नवरात्रि उत्सव मनाने की परंपरा का प्रचलन हुआ। इस बार अश्विन मास में नवरात्रि का पर्व 1 अक्टूबर से प्रारम्भ होगा और 11 अक्टूबर दशमी तिथि तक मनाया जाएगा। जानें कैसे करें इस बार नवरात्रि में माता को प्रसन्न।

घट स्थापना व नवरात्रि पूजन विधि।

1. अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को जब नवरात्रि पर्व का आरम्भ होगा प्रातः काल स्नान कर लें।

2. मिट्टी का बर्तन(वेदी) लें और उसमें जौ और गेहूँ दोनों को मिलाकर बो दें।

3. उसी वेदी के समीप धरती का पूजन करें और इस पूजित स्थान के पास कलश की स्थापना करें। कलश सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का होना चाहिए।

4. कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और कलश के गले में मौलि लपेटें।

5. कलश स्थापित किए जाने वाली भूिम अथवा चैकी पर अष्टदल कमल बनाएं तत्पश्चात उस पर कलश स्थापित करें।

6. कलश में जल भरें और उसके अन्दर चंदन, दूर्वा, सुपारी, साबुत हल्दी, बादाम शुद्ध स्थान की मिट्टी, सिक्के डालें।

7. कलश पर चावल या जौ से भरा पात्र रखें और उस पर लाल वस्त्र लपेटे हुए नारियल रखें।

8. इसके बाद मां सरस्वती, मां लक्ष्मी, व मां दुर्गा का आहवाहन करें।

9. सबसे पहले आसन पर बैठकर तीन बार शुद्ध जल ग्रहण करें और अपने ऊपर छिड़कें और बोलें ऊँ केशवाय नमः, ऊँमाधवाय नमः, ऊँनारायणाय नमः। इसके पश्चात हाथ धों लें।

10. इसके बाद हाथ में चावल लेकर मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, व मां सरस्वती, का आहवाहन करें। अब कहें ऊँ श्री दुर्गा देवी माँ-

पंचामृत समर्पयामि - माता के समक्ष पंचामृत चढ़ायें।

जल समर्पयामि - जल चढ़ायें।

नैवेधं समर्पयामि - ताजा बना भोजन चढ़ायें।

मिष्ठान्न समर्पयामि - मिठाई चढ़ायें।

दीपकं दर्शयामि- माता की दीपक से आरती करें।

गंध समर्पयामि - माता के समक्ष अगरबती जलाएं।

पुष्पं समर्पयामि- माता को पुष्प चढ़ायें।

फलं समर्पयामि- माता को फल चढ़ायें।

तांबुल समर्पयामि- माता को सुपारी, लौंग, इलायची युक्त पान चढ़ायें।

वस्त्रं समर्पयामि- माता को वस्त्र चढ़ायें।

धन समर्पयामि- माता को धन चढ़ायें।

इसके बाद माता दुर्गा की आरती उतारनी चाहिए।

नवरात्रि पूजा मंत्र

प्रथम दिन माता शैलपुत्री के मंत्र ऊँ शां शीं शूं शैलपुत्र्ये स्वाहा।। का जाप करें।

द्वितीय दिन माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्ये नमः स्वाहा।। का जाप करें।

तृतीय दिन माता चंद्रघंटा के मंत्र ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं चन्द्रघंटायै स्वाहा।। का जाप करें।

चतुर्थ दिन माता कूष्माण्डा के मंत्र ऊँ ह्रीं कूष्मांडायै जगत्प्रसूत्यै नमः।। का जाप करें।

पाँचवे दिन माता स्कंदमाता के मंत्र ऊँ ह्रीं सः स्कंदमात्र्यै नमः।। का जाप करें।

छठवें दिन माता कात्यायनी के मंत्र ऊँ ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै नमः।। का जाप करें।

सातवें दिन माता कालरात्रि के मंत्र ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः।। का जाप करें।

आठवे दिन माता महागौरी के मंत्र ऊँ ह्रीं श्रीं ग्लौं गं गौरी गीं स्वाहा।। का जाप करें।

नवे दिन माता सिद्धिदात्रि के मंत्र ऊँ ह्रीं सः सिद्धिदात्र्यै नमः।। का जाप करें।

इसके साथ ही मात्रा दुर्गा के मंत्र ऊँ दुं दुर्गाय नमः। एवं ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चै का भी जाप करें।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ करने का विशेष महत्व है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से घर में शांति रहती है, धन और पुत्र सुख की प्राप्ति होती है। ये पाठ भय से मुक्ति दिलाने वाला, राज्य से लाभ प्राप्त करवाने वाला माना गया है। इस कल्याणकारी पाठ से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और सभी तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

नवरात्रि व्रत की कथा

पीठत नगर में एक ब्रह्माण रहता था। वह भगवती दुर्गा का बड़ा भक्त था। उसके घर में अनेक गुणों वाली सुन्दर सुमति नाम की कन्या का जन्म हुआ। वह कन्या प्रतिदिन शुक्लपक्ष के चन्द्रमा के समान बढ़ने लगी। उसके पिता प्रतिदिन माता दुर्गा की पूजन और हवन करते और वो कन्या वहां उपस्थित होती। एक दिन वह कन्या पूजन में उपस्थित नहीं हुई। ये देखकर उसके पिता को बड़ा क्रोध आया और उसने कहा कि हे पुत्री आज तुमने माँ भगवती का पूजन नहीं किया इस कारण मैं तेरा विवाह कुष्ठ रोगी और दरिद्री मनुष्य से करूँगा।

पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ पर वो बोली मैं आपकी पुत्री हूँ। इस कारण आपकी जैसी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हैं। पर वही होगा जो मेरे भाग्य में लिखा है। पुत्री की ऐसी निर्भयता देखकर ब्राह्मण को और क्रोध आ गया और उसने सुमति का विवाह एक कुष्ठी और दरिद्री के साथ कर दिया। इसके बाद उसने अपनी पुत्री से कहा कि अब देखें केवल भाग्य के भरोसे रहकर तुम क्या करती हो?

सुमति अपने पति के साथ वन में चली गई और उस भयावने स्थान पर बड़ी कष्ट के साथ रात व्यतीत की। उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती उसके पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर कहने लगीं कि तुम जो चाहो वो वरदान मांग सकती हो। माता भगवती ने सुमति को बताया कि सुमति पूर्व जन्म में भील की स्त्री थी और अत्यंत पतिव्रता थी। एक दिन उसके पति ने चोरी की जिसके कारण तुम दोनों को जेलखाने में बन्द कर दिया गया। जेल में तुझे और तेरे पति को भोजन और पानी भी नहीं मिला। उस वक्त नवरात्र का समय था इसलिए तुम दोनों का नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। उसी व्रत के प्रभव से मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ, इसलिए जो चाहो वो माँग लो। तब सुमति ने माता से कहा कि यदि आप मुझसे से प्रसन्न हैं तो मेरे पति का कुष्ठ रोग दूर कर दीजिए। तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से निरोगी और कांति युक्त हो गया। ये देखकर सुमति माता दुर्गा को बार-बार प्रणाम कर अनेक बार स्तुति करने लगी। उसकी स्तुति सुनकर माता भगवती प्रसन्न हो उठीं और उसे आशीर्वाद दिया कि उसे अति बुद्धिमान, धनवान, जितेन्द्रिय, प्रसिद्ध उदालय नाम का पुत्र होगा। इसके साथ ही माता भगवती ने सुमति से कुछ और मांगने को कहा। तब सुमति ने माता से व्रति की विधि जाननी चाही।

नवरात्र व्रत विधि

माता ने बताया कि नवरात्रि में नौ दिन तक व्रत करें और यदि दिन भर व्रत नहीं कर सकते तो एक समय भोजन करें। व्रत की कथा पढ़ें। कलश स्थापना करें और वाटिका बनाकर गेहूँ और जौ को प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों का विधिपूर्वक पूजन कर विधि पूर्वक पुष्प चढ़ायें। व्रत में सिंघाड़े या कूटू से बनी चीज़ें, दूध, दही, फल, आलू, साबूदाना, मूंगफली, नारियल, गारज, लौकी से बने व्यंजन, संवा के चावल आदि ले सकते हैं। इस प्रकार नौ दिन तक व्रत और पूजन कर फिर हवन करें।

नवरात्रि हवन विधि

हवन सामग्री-

हवन मिश्रण- बाज़ार से पैकेट खरीद लें। हवन की लकड़ी (समिधा)- आम/पीपल की लकड़ी, अन्य साम्रगी- कपूर, अगरबती, कलावा, सुपारी-9, पान, बताशे, पंचफल, हवन कुंड।

1. हवन कुंड में लकड़ी रखें

2. ऊँ पावकाग्नये नमः इस मंत्र को बोलकर अग्नि प्रज्ज्वलित करें।

3. अब बीच की दों ऊँगली से हवन सामग्री थोड़ी-थोड़ी हवन कुण्ड में डालते जाएं और निम्न मंत्र बोलते जाएंः-

ऊँ गणपतये स्वाहा।। इदं गणपतये।

ऊँ विष्णवे स्वाहा।। इदं विष्णवे।

ऊँ शंभवे स्वाहा।। इदं शंभवे।

ऊँ ब्रहमै स्वाहा।। इदं ब्रहमै।

ऊँ लक्ष्मयै स्वाहा।। इदं लक्ष्मयै।

ऊँ पार्वत्यै स्वाहा।। इदं पार्वत्यैै।

ऊँ सरस्वत्यै स्वाहा।। इदं सरस्वत्यैैै।

ऊँ सर्व देवी देवताय।। इदं सर्व दैव्ये।

इस प्रकार अन्य देवी देवताओं, नवग्रहों के नाम भी लिए जा सकते है।

जब समस्त आहुतियाँ हो जायें तो हवन कुण्ड के समक्ष हाथ जोड़ें, आरती करें और जब अग्नि शांत हो जाएं तो कुछ बून्द जल हवन कुण्ड में डालें तथा हवन कुण्ड के धुएं को सारे घर में फेलाकर उसे किसी स्वच्छ जगह रख दें।

कन्याओं को भोजन करायें।

हवन के बाद अष्टमी या नवमी के दिन विधिवत कन्या पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कन्या रूप में पूजन करने से माता दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। इस दिन नौ छोटी कन्याओं के पैर धोकर उन्हें आसन पर बैठाया जाता है। माता को चने, हलुआ, पूड़ी, खीर आदि का भोग लगाने के बाद कन्याओं को भोजन कराया जाता है। इसके बाद कन्याओं का रोली से तिलक कर उन्हें दक्षिणा दी जाती है। ऐसा करने से आपके जीवन में धन, संपदा, सुख की कोई कमी नहीं रहेगी।

प्राप्त होता है शीघ्र विवाह का आशीर्वाद।

वे कन्यायें जिनके विवाह में बिलम्ब हो रहा है वो इस नवरात्रि पर माता पार्वती का पूजन कर माता से शीघ्र विवाह होने का आशीर्वाद प्राप्त कर सकती हैं। इसके लिए ऊपर बतायी हुई विधि से माता की आराधना कर व्रत रखें और नवरात्रि में पूर्ण भक्ति के साथ माता के मंदिर में माता को साड़ी और श्रृंगार की सामग्री चढ़ायें। ऐसा करने से विवाह की मनोकामना माता शीघ्र पूरी कर देती है और अच्छे घर-वर की प्राप्ति होती है।

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