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बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

नवरात्रि विशेष : प्रथम पूजा 10 अक्टूबर पर जाने ऐसे मंदिर की कहानी जहां घी का दीया माता की शक्ति का बयां कर रहा हैं


भागलपुर जिला के उत्तरी छोर पर पुलिस जिला नवगछिया से करीब 8 किलोमीटर पूरब दो प्रखंडों नवगछिया और गोपालपुर को जोड़ने वाली मुख्य सड़क के किनारे बसा है पचगछिया गांव ।

 गंगा और कोसी नदी के मध्य बसा इस गांव की आबादी लगभग 5000 की है यहां सभी देवी देवताओं के अलग-अलग मंदिर की स्थापना से ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल से पूर्वजों में धर्म के प्रति अधिक आस्था रही होगी यूं तो यहां कई देवी-देवताओं के मंदिर है परंतु उनमें मां दुर्गा की विजय वाहिनी स्वरूप वाले अनोखे मंदिर अपने आप में विशेष महत्व रखता है इस गांव में प्रतिवर्ष दशहरा पूजा के अवसर पर बंगाल के कुशल कारीगरों द्वारा मिट्टी की प्रतिमा भी बनाई जाती है और धूमधाम से मेले का आयोजन किया जाता है लेकिन इस अनूठे मंदिर देवी दुर्गा की संगमरमर की बनी छोटी प्रतिमा की स्थापना सन 1955 में इस गांव के ही जमींदार युधिष्ठिर प्रसाद सिंह एवं तिलकधारी सिंह जी के सौजन्य से इन के जेष्ठ पुत्र बाबू राम नारायण सिंह के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ यह मंदिर वर्तमान में इन्हीं के वंशजों द्वारा संचालित है

शिव प्रसाद सिंह जो संस्थापक परिवार के सदस्य हैं का कहना है कि मंदिर की स्थापना का उद्देश्य धर्म के प्रति झुकाव के साथ-साथ आत्मरक्षा तथा पारिवारिक उत्थान की भावना से था स्वर्गीय राम नारायण सिंह जो कि मंदिर के संस्थापक थे को स्वप्न हुआ कि कलश पूजा किया जाए उन्होंने अपने स्वर्गीय कुंदन कुमार के सहयोग से एक झोपड़ी में कलश पूजा प्रारंभ की भक्ति भावनाओं से तथा ईश्वर में विश्वास रखने वाला या परिवार शक्ति की देवी की स्थापना के प्रति था या परिवार बड़ी ही नियम निष्ठा से धूमधाम से हर्षोल्लास के साथ मंदिर की स्थापना की ।

मंदिर में मुख्य प्रतिमा मां दुर्गा की महिसासुरमर्दनी रूपी है जो अपने अप्रतिम  तेज और दिव्य दृष्टि से अलंकृत है साथ ही प्रतिमा के बाएं और दाएं 2 योगिनीयां है । जो मां दुर्गा की सहयोगिनी हैं । मां दुर्गा का रूप अपने कारनामों से लोगों को प्रभावित करता है मां दुर्गा की विजयवाहिनी रूप और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है । कई सिद्ध साधक अपने मनोभिलाषित इच्छा  की पूर्ति के लिए तन मन धन से देवी की अर्चना और अपनी मंजिल को अंजाम देने में सफल हुए ।


दशहरा पूजा के समय मंदिर में दसों दिन दीपक निरंतर जलते रहता है दीपक का बुझना यहां के लोग और अशुभ सूचक मानते हैं तथा अनिष्ट की आशंका करते हैं ।

 एक बार की कहानी है कि अनायास ही आंधी तूफान उठ खड़ा हुआ मंदिर में खिड़की के पल्ले नहीं रहने के कारण दीपक बुझ जाने की आशंका थी उस भयंकर हवा के झोंके में दीपक का निरंतर जला रहना अद्भुत आश्चर्य आश्चर्य तो है ही यहां देवी की कृपा से समय-समय पर छोटी बड़ी अद्भुत घटनाएं होते होते टल जाती है जिससे लोगों के दिलों में आस्था और बढ़ती जाती है विनय कुमार सिंह का कहना है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले के मनोरथ सिद्ध होते हैं यहां साधकों द्वारा किया जाने वाला महामृत्युंजय , बगलामुखी आदि जपों को  नियम पूर्वक करने पर उसका तत्कालिक प्रभाव देखा जाता है मंदिरों की व्यवस्था की देखरेख हेतू इसके संस्थापक ने 4 बीघा 5 कट्ठा  जमीन अंशदान दिया है वर्तमान में मंदिर के संचालक का भार सीता शरण सिंह के जिम्मे था जो कि अब उन्हीं के परिवार के सहयोगी द्वारा संपन्न कराया जाता हैं जो कि  संस्थापक परिवार के वंशज हैं ।

ये लोग दशहरा पूजा तथा दैनिक उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं का प्रबंध करते हैं मंदिर की दैनिक पूजा का भार गांव के ठाकुर वाली के पुजारी को सौंपा गया है । गोसाईं गाँव के पंडित कुशेश्वर झा द्वारा या कार्य संपन्न होता था परंतु उनके आकस्मिक निधन के पश्चात उनके पुत्र के सहयोग से यह कार्य संपन्न होता है वर्तमान में इस कार्य के लिए पंडित मनोज झा नियुक्त है । मंदिर में दुर्गा पूजा के समय में देवी की पूजा वृहत रूप में की  जाती है समय निष्ठा के साथ यहां पूजा स्थापना के समय से ही होती आ रही है दरभंगा निवासी पंडित मोहन मिश्रा जो कि इस परिवार के गुरु महाराज थे जिन्होंने इस परिवार के सदस्यों को गुरु मंत्र और गुरु दीक्षा देने का कार्य किया था के द्वारा ही आश्विन मास में होने वाली पूजा संपन्न होती आ रही थी ।

वह बहुत ही निर्धन परिवार के ब्राह्मण थे परंतु अपनी त्याग तपस्या तथा पूजा में आशक्ति के बदौलत उनकी निर्धनता संपन्नता में बदल गई ।

तेतरी निवासी पंडित विद्याधर कुँवर द्वारा दशहरा पूजन संपन्न किया जाता हैं ।

मंदिर के संस्थापक परिवार के लोगों ने बताया कि हाल ही में शिव शक्ति योग पीठ के संस्थापक स्वामी आगमानंद जी महाराज द्वारा सप्तशती का धाराप्रवाह पाठ संपन्न हुआ  जो कि अपने आप में काफी प्रभावशाली रहा ।  पूजा पाठ से मंदिर का दिव्य पुंज विद्यमान रहता है

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