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रविवार, 9 अक्तूबर 2016

नौवें दिन हवन की विधि और उससे चमतकारी लाभ से धन यश की वृद्धि :  डॉ रजनीकान्तदेव

GS:

 नौवें दिन की दुर्गा सिद्धिदात्री हैं। यह दिन मां सिद्धिदात्री दुर्गा की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। मां भगवती ने नौवें दिन देवताओं और भक्तो के सभी वांछित मनोरथों को सिद्ध कर दिया, जिससे मां सिद्धिदात्री के रूप में सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हुई।

परम करूणामयी सिद्धिदात्री की अर्चना व पूजा से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं। बाधाएं समाप्त होती हैं एवं सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार अष्टमी को विविध प्रकार से भगवती जगदम्बा का पूजन कर रात्रि को जागरण करते हुए भजन, कीर्तन, नृत्यादि उत्सव मनाना चाहिए तथा नवमी को विविध प्रकार से पूजा-हवन कर नौ कन्याओं को भोजन खिलाना चाहिए और हलुआ आदि प्रसाद वितरित करना चाहिए और पूजन हवन की पूर्णाहुति कर दशमी तिथि को व्रती को व्रत खोलना (पारण करना) चाहिए।
 *हवन की विधि एवं उससे लाभ:-*
 दुर्गा सप्तशती में बताया गया है कि मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किस प्रकार से हवन करना चाहिए। हवन के समय लक्ष्मी, ऐश्वर्य और धन संबंधी इच्छा की पूर्ति के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें। वशीकरण, उच्चाटन आदि के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें। बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें। जबकि सात्विक साधनाओं आदि प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें। धन संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें। यदि पीले वस्त्र न हों, तो मात्र धोती पहन लें और ऊपर से शाल लपेट लें। आप चाहें, तो धोती को केसर के पानी में भिगोकर पीला भी रंग सकते हैं।

जायफल से हवन करने से कीर्ति की प्राप्ति होती है। किशमिश से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से सुख और केले से आभूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्घ्य देकर यथाविधि हवन करें। खांड, घी, गेंहू, शहद, जौ, तिल, बिल्वपत्र, नारियल, किशमिश और कदंब से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खीर से परिवार-वृद्धि, चंपा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्ति होती है। कमल से राज सम्मान और किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ, तिल तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।

*व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रणाम करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उन्हें दक्षिणा दें। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है, उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत और हवन करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।*

इस दौरान 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' मंत्र शीघ्र विवाह देने वाला माना जाता है। धन-लाभ के लिए स्फटिक की माला पर 'क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे' मंत्र का जाप करें। परेशानियों के अंत के लिए 'ओम ऐं ह्यीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' मंत्र का जाप करना चाहिए।

*हवन के उपरांत साधक जानकारी के अभाव में स्वेच्छानुसार आरती उतार लेते हैं, जबकि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारने का विधान है। चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से और सात बार पूरे शरीर पर से। इस प्रकार चौदह बार आरती की जाती है। जहाँ तक हो सके विषम संख्या अर्थात 1, 5, 7 की संख्या में बत्तियां बनाकर ही आरती की जानी चाहिए। इस प्रकार विधानपूर्वक मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए किया गया हवन सब प्रकार के रोग-शोक का नाश करता है और साधक को ऐश्वर्य व मोक्ष प्रदान करता है।*

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