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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

शरद पूर्णिमा : जानें महत्त्व व दमा रोग को दूर करने के अचूक उपाय

GS:
अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। पूर्णिमा तो हर महीने होती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व कुछ विशेष् है। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर, शनिवार को है। हिंदू पुराणों के अनुसार माना जाता है कि शरद पूर्णिंमा की रात को चांद पूरी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। ये किरणें सेहत के लिए बहुत ही लाभदायक है।
 
शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में दशमूल क्वाथ, सौंठ, काली मिर्च, वासा, अर्जुन की छाल चूर्ण, तालिश पत्र चूर्ण, वंशलोचन, बड़ी इलायची पिप्पली इन सबको आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकाएं और खीर बना लेंI खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें, अब इस खीर को चांदी या पीतल के साफ बर्तन में रात भर पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें और अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ देकर,अब इस खीर को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में लगभग 4-6 के बीच सेवन करना चाहिए ।

 
इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है I रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है , इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना हैI

 
उक्त खीर को स्वस्थ व्यक्ति भी सेवन कर सकते हैं ,बल्कि इस पूरे महीने मात्रा अनुसार सेवन करने साइनोसाईटीस में भी लाभ मिलता हैI कई आयुर्वेदिक चिकित्सक शरद पूर्णिमा की रात दमे के रोगियों को रात्रि जागरण के साथ कर्णवेधन भी करते हैं, जो वैज्ञानिक रूप सांस के अवरोध को दूर करता हैI

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :- 'पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।'

अर्थात रसस्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं। (गीताः15.13)

साभार : डॉ रजनीकांत देव ।
               नवगछिया

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