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मंगलवार, 31 मार्च 2020

एक अनोखी रचना : हम ‘कोरोना’ फतह कर पाएँगे ।। -- आकाश गोस्वामी


“ पतझड़ करते हैं लाख कोशिश,
    फिर भी ये उपवन मरा करते कहाँ ?
    चंद मुखड़ों की नाराज़गी से,
     ये दर्पण कभी टूटा करते कहॉं? “

चट्टान सी खड़ी है मुसीबत, हम
 सागर की लहर बन टकराएँगे,
बिखर रहा है इंसान ज़र्रा-ज़र्रा,
हम आत्मविश्वास की कंधी से,
‘कोरोना’ के डर को संवार लाएँगे।
हॉं! हम ‘कोरोना’ फतह कर पाएँगे ।।

भविष्य का खाका,वर्तमान में खींच,
अपने इस जहां को,बचा ले जाएँगे।
होगा बेशक ‘महामारी’ दुनिया के लिए,
हम ‘भारतवासी’ इसके अंत का, 
क़ाफ़िला,ख़ुद ही बनते चले जाएँगे ।।
हॉं! हम ‘कोरोना’ फतह कर पाएँगे ।।

हम अंतर्तम की ज्वाला से, इस
धरती में आग लगा सकते हैं ।
हम डमरू की प्रलय ध्वनि से, 
भीषण संहार नचा सकते हैं । 
तेरी क्या बिसात हैं ‘कोरोना’ ?
हम काल के माथे से यकीनन 
तेरा ज़िक्र-जहां मिटा सकते हैं ।
हॉं! हम ‘कोरोना’ फतह कर सकते हैं ।।

भय-विस्मय का अंत कर,अब
दुनिया में ऐलान ये करना हैं,
साथ मिलकर ही भारत में अब
‘कोरोना’ का अंत करना हैं ।
कदमों की ताल से अपनी,
अपनत्व का बादल सजा देंगे,
डूब रही हो अर्थव्यवस्था फिर भी 
हम जन-जन में हिम्मत का,
निवेश आपार कर जाएँगे ।
हॉं! हम ‘कोरोना’ फतह कर जाएँगे ।।

आशाओं के धागें जोड़-जोड़ संग,
इंसानियत की अनोखी चादर बुनना हैं,
मुहिम तो बहुत लड़ी है हमने, अब
बस! ‘कोरोना’ फतह करना हैं ।
हॉं! हमें ‘कोरोना’ फतह करना हैं ।।
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